Sunday 26 July 2015

#प्रेसकॉन्फ्रेंस: पढ़ें केजरीवाल के इंटरव्यू का शब्द-ब-शब्द ट्रांस्क्रिप्ट By एबीपी न्यूज

Saturday, 25 July
नई दिल्ली: एबीपी न्यूज के खास कार्यक्रम ‘प्रेस कांफ्रेंस’ में अरविंद केजरीवाल से पूछे गए तीखे सवाल और उन्होंने भी तीखे सवालों का बड़ी बेबाकी से जवाब दिए.

यहां पढ़ें अरविंद केजरीवाल के इंटरव्यू की पूरी ट्रांस्क्रिप्ट:-

सवाल दिबांग: फरवरी में चुनाव खत्म हो गए 2014 में पर ऐसा लग रहा है कि अरविंद केजरीवाल अभी भी कैंपेन मोड में हैं आप उससे बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं, लग रहा है कि कल ही चुनाव होने वाले हैं.

जवाब केजरीवाल- ऐसा क्या कर रहे हैं हम लोग?

दिबांग- आप लगातार लड़ते-भिड़ते, बैठ कर संयम से कहीं काम करते नहीं दिखायी दे रहे हैं, लग रहा है बहुत जल्दी में हैं हड़बड़ी में हैं?

केजरीवाल- नहीं जल्दी में हैं तो अच्छा है, ज्यादा काम करेंगे. जनता ने इसीलिए वोट दिया है कि ज्यादा काम करें. जनता इस बात से खुश भी बहुत है कि हम लोग ज़्यादा काम कर रहे हैं लेकिन जो कहा जा रहा है कि हम लड़ाई कर रहे हैं तो वो तो हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं, हमारे काम में बाधांए पहुचाई जा रही है, तरह-तरह की अड़चनें पहुंचाई जा रही है. तरह-तरह से परेशानियां क्रिएट की जा रही हैं, हम तो कोशिश कर रहे हैं कि उन परेशानियों को लांघ के जनता के लिए काम करते रहें और जितना काम हमने पिछले चार महीने में किया है ये तो जनता मान रही है कि किसी ने इतना काम नहीं किया है. जितने लोग मिलते हैं.

जैसे आप ने कहा हम कैंपेन मोड में हैं तो मैं जनता के बीच बहुत घूमता हूं, अभी भी घूमता हूं, हालांकि चुनाव के बाद कोई नेता दिखाई नहीं देता जनता के बीच में लेकिन अभी भी मैं लगभग हर शाम किसी ना किसी इलाके में रहता हूं. जनता बहुत खुश है, एक सेंस जो आता है. और ये किसी भी पॉलिटिकल पार्टी के लिए बहुत बड़ी बात है. इतने भारी बहुमत से जीतने के बाद एक्सपेक्टेशन बहुत ज्यादा हो जाती हैं. तो पहले कुछ महीने किसी भी पार्टी के लिए बड़े मुश्किल होते हैं बीकॉज फिर डिलीवरी उतनी नहीं हो पाती. आज चार-पांच महीने के बाद भी अगर जनता इतनी खुश है तो ये मुझे लगता है कि हमारी पार्टी, हमारी सरकार के लिए अच्छा संदेश है.

सवाल सबा नकवी- दिल्ली पुलिस को लेकर मैं सवाल करती हूं. मान लीजिए कि दिल्ली पुलिस किसी तरह आम आदमी पार्टी की सरकार के अंदर आ भी जाए तो वही फोर्स आप को मिलेगी, आप क्या चमत्कार कर सकते हैं और दूसरी बात क्या आप मानते हैं कि पुलिस सरकार के अधीन होनी चाहिए या पुलिस को इंडिपेडेंट भी होना चाहिए क्योंकि आज-कल रोज दिल्ली पुलिस को लेकर विवाद चल रहा है?

जवाब केजरीवाल- इसमें दो-तीन पहलू हैं, मैं इसमें थोड़ा सा क्लीयर करना चाहता हूं एक तो एक इंटरव्यू में मैंने ठुल्ला शब्द इस्तेमाल किया गया जिस पर बड़ी कॉन्ट्रोवर्सी हुई. दिल्ली पुलिस के अंदर ढेर सारे अच्छे लोग काम करते हैं मैं ये क्लीयर कर देना चाहता हूं और दिल्ली पुलिस बहुत सारे लोगों ने हमें सपोर्ट किया, हमें वोट दिया और हम भी जीतने के बाद उनके लिए खूब काम कर रहे हैं. हमारी पहली सरकार है जिसने ये ऐलान किया कि अगर दिल्ली पुलिस का कोई भी कर्मचारी अगर काम करते हुए शहीद हो गया तो उसको 1 करोड़ रुपए का मुआवजा देंगे. जैसे ही मैं मुख्यमंत्री बना 10 अप्रैल के आस-पास मैंने चिठ्ठी लिखी पुलिस कमिश्नर साहब को कि दिल्ली पुलिस के क्वाटर्स में कई कॉलोनी में गया था मैं चुनाव प्रचार के दौरान और मैंने देखा कि बहुत बुरे हाल में रह रहे हैं दिल्ली पुलिस के कर्मचारी. मैंने उनको कहा कि आपको ये सब करने के लिए इनके वेलफेयर के लिए क्या-क्या कमियां आ रही हैं मुझे बताइए मैं सेंटर के साथ बात करुंगा.

वजीरपुर के अंदर इनकी एक पुलिस कॉलोनी है, किंग्सवे कैंप में एक पुलिस कॉलोनी है, जिसमें हमने एमएलए फंड से काम करवाया है. जबकि दिल्ली सरकार की ये जिम्मेदारी नहीं है. हम काफी काम कर रहे हैं. उनका वेलफेयर हमारे लिए इंपार्टेंट है, ठुल्ला शब्द का मैंने सिर्फ उन चंद पुलिसवालों के लिए इस्तेमाल किया था जो भ्रष्टाचार करते हैं, रेड़ी-पटरी वालों को तंग करते हैं. ये मैं क्लीयर करना चाहता हूं. पुलिस वालों के लिए मेरे मन में, अब मैं आपके सवाल पर आता हूं सॉरी थोड़ा लंबा हो गया. पुलिस के ऊपर डेमोक्रेटिक कन्ट्रोल होना बहुत जरुरी है, पॉलिटिकल कन्ट्रोल होना बहुत जरुरी है. पॉलिटिक्स अच्छी हो अगर पॉलिटिक्स ही खराब हो तो वो दिल्ली पुलिस का बहुत दुरुपयोग करते हैं. दूसरी चीज हमारे पुलिस कमिश्नर साहब के साथ कोई मतभेद नहीं है अभी कमिश्नर साहब मुझसे मिलने आए थे. मैंने अंदर कमरे पुलिस कमिश्नर बस्सी साहब सारी दिल्ली मानती है कि आप ईमानदार आदमी हो, सारी दिल्ली मानती है आप अच्छे आदमी हो लेकिन आज पुलिस को गलत इस्तेमाल किया जा रहा है. बस्सी साहब नहीं कर रहे जो कुछ हो रहा है, सब कुछ ऊपर से आ रहा है, पीएमओ से आ रहा है.

मैं आपको दिखाता हूं ये एक एफआईआर है मेरे खिलाफ. सिटिंग चीफ मिनिस्टर के खिलाफ, किस लिए? ठुल्ला शब्द का इस्तेमाल करने के लिए. आज तक भारत के इतिहास में कभी ऐसा हुआ है किसी सीटिंग चीफ मीनिस्टर के खिलाफ इतनी फ्रीवलेस एफआईआर किसी ने लिखी हो. ये बस्सी साहब ने नहीं लिखवाई, ये नीचे पुलिस वाले ने नहीं लिखवाई. किसी ना किसी ने ऊपर से मतलब कोई बहुत जबरदस्त प्रेशर रहा होगा कि मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर लिखवाई.

हमारे एक कार्यकर्ता को पुलिस वैन ने कुचलने की कोशिश की उसपर एफआईआर नहीं हुई, व्यापम का इतना बड़ा घोटाला हो गया शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ एफआईआर नहीं हुई, ललित गेट का इतना बड़ा घोटाला हो गया, वसुंधरा राजे के खिलाफ एफआईआर नहीं सुषमा स्वराज जी के खिलाफ एफआईआर नहीं हुई, केजरीवाल ने ठुल्ला कह दिया इसलिए, इसके पीछे की पॉलिटिक्स को समझने की कोशिश कीजिए कि ये जो 67 सीट जो आई है उसने बहुत सारे लोगों की नींव हिला दी है, नींद हराम कर दी है. वो बदला ले रहे हैं दिल्ली की जनता से लेकिन जब आप सच्चाई पर चलते हैं ना तब चिंता करने की जरुरत नहीं है.
 
सवाल संगीता तिवारी- इसी से जुड़ा सवाल मेरा है कि जो ठुल्ला शब्द का इस्तेमाल किया और अभी आप ने उसे एक्सप्लेन भी किया, मैं आप से जानना चाहती हूं कि आप मुख्यमंत्री हैं जिस अर्थ में आपने इस्तेमाल किया वो कितना सही है और क्या आप ये शब्द वापस लेंगे, माफी मांगेगे क्योंकि जिस तरह से विरोध हो रहा है.

जवाब केजरीवाल- तुरंत माफी पर आ जाते हैं
दिबांग- शब्द वापस लेंगे क्या
केजरीवाल- चलिए शब्द वापस ले लीजिए. मेरा कहने का मतलब ये था. अगर उस इंटरव्यू को आप देखें… जो पुलिसवाले रेड़ी-पटरी वालों गरीब लोगों को तंग करते हैं. हमें वोट ज्यादा किन लोगों ने दिया वैसे तो सभी तबको ने दिया तभी 67 सीट आ सकती है लेकिन ज्यादातर गरीबों ने दिया. जब मेरे पास लोग आते हैं कहते हैं जी पुलिस वाले तंग कर रहे हैं, पैसे लेते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं तो बड़ी तकलीफ होती है. उनके खिलाफ तो एक्शन लेना पड़ेगा, उन लोगों लिए मैंने वो शब्द इस्तेमाल किया था और हमारे ईमानदार अफसरों की भावनाओं को अगर ठेस पहुंची है तो उन ईमानदार अफसरों से मैं माफी मांगता हूं.

सवाल दिबांग- आप कह रहे हैं उनको ऊपर से प्रेशर रहता है.
जवाब- केजरीवाल-पीएमओ से
दिबांग- पीएमओ में मतलब क्या, किससे
केजरीवाल- प्रधानमंत्री जी से
दिबांग- प्रधानमंत्री जी की नजर पड़ती होगी जब वो देखते होगें ऊपर से कि एक दिल्ली भी है यहां गड़बड़ी हो रही है

केजरीवाल- मैं जब से ये डेढ़ दो महीने से जबसे ये ज्यादा कांन्ट्रोवर्सी चल रही है, सबसे पहले आपको याद है जब इन्होंने नोटिफिकेशन निकाला था कि हम ट्रांसफर पोस्टिंग भी नहीं कर सकते, चपरासी से लेकर चीफ सेक्रेटरी तक सारी पोस्टिंग केंद्र सरकार करेगी. उसके बाद एक-ढेढ़ महीने में केन्द्रीय मंत्रियों से सरकार के मंत्रियों से बीजेपी के नेताओं से ये समझने के लिए कि पॉलिटिक्स क्या है ? किसी की नहीं चल रही है, मंत्री बताते हैं, आपको तो ज्यादा पता होगा आप ज्यादा घूमते हैं. मंत्री बताते हैं मंत्री अपने पीए नहीं रख सकते, मंत्री अपने सेकेट्री नहीं रख सकते. सब कुछ पीएमओ से आता है, सब वहां से आता है, सब लोग यही कह रहे हैं कि सब कुछ कन्ट्रोल वहीं से हो रहा है. मतलब एमएचए का तो ना लिया जा रहा है, राजनाथ जी अच्छे आदमी हैं लेकिन मुझे नहीं लग रहा एमएचए में उनकी चल रही है.

सवाल कंचन गुप्ता- ये दिल्ली को स्टेटहुड का डिमांड है आप लोगों का, दुनिया में कोई भी ऐसा देश नहीं है जहां राजधानी को अलग राज्य माना जाता है तो आप उससे अलग होके एक राज्य क्यों बनाना चाह रहे हैं. उससे जुड़े लोगों को आप भड़का रहे हैं, जनमत संग्रह की बात कर रहे हो ये तो संविधान में भी नहीं है ?
जवाब केजरीवाल- दो चीजें जैसे दुनिया में बहुत सारे ऐसे मॉडल्स हैं जिसमें छोटा. जैसे एनडीएमसी एरिया इस मॉडल पर कई दिन से चर्चा चल रही है और 2003 या 02 में आडवाणी जी ने खुद ये प्रस्ताव रखा था आडवाणी जी जब होम मिनिस्टर थे.  एनडीएमसी के एरिया को उसे केन्द्र सरकार रख ले और एमसीडी का जो एरिया है उसमें आप पुलिस को और जमीन को आप दिल्ली सरकार को दे दें.

आप खुद देख लें, हमारे एमएलए के पास लोग आते हैं जी वहां ये हो गया वो हो गया, हम कुछ कर ही नहीं सकते क्योंकि किसी तरह का पुलिस पर कन्ट्रोल ही नहीं है अगर पुलिस के ऊपर डेमोक्रेटिक कन्ट्रोल होगा असेंबली का कन्ट्रोल होगा तो असेंबली में चार सवाल पूछें जाएंगे तो उससे एकाउंटबिलटी फिक्स होती है, अगर आपका किसी किस्म का कन्ट्रोल नहीं होगा आप खुद देख लीजिए अभी सीधे पुलिस किसको जिम्मेदार है थ्योरिटिकली एमएचए लेकिन प्रैक्टिकली तो पीएमओ कन्ट्रोल करती है.

कंचन गुप्ता-एलजी को रिपोर्ट करती है
केजरीवाल- एलजी को रिपोर्ट करती है, एलजी साहब एमएचए को और एमएचए पीएमओ को और आज प्रैक्टिकली पीएम के यहां से सारे डारेक्शन आ रहे हैं, मोदी जी के यहां से सारे डायरेक्शन आ रहे हैं. ऐसे में एक निरंकुशता आ गयी है पुलिस के अंदर पहली चीज तो ये दूसरी लैंड के बारे थोड़ी सी जानकारी, आप सब लोग भी थोड़ी सी मदद कीजिएगा. हमारी जमीन है, आपकी जमीन है दिल्ली तो आप ही लोगों की है, दिल्ली आप की जमीन है. मैं यहां पर अगर एक अस्पताल बनाना चाहूं तो मेरे को चार करोड़ प्रति एकड़ डीडीए से खरीदना पड़ता है अब इसमें दो तरह से मर रहे हैं हम लोग एक तो ये कि जमीन एक राज्य सरकार के लिए रेवेन्यू का महत्वपूर्ण सोर्स है. आप अलग-अलग यूपी ले लीजिए, बिहार ले लीजिए.

आप जमीन को डेवलप करके उस पर प्रोजेक्ट बना के उससे अर्न करते हैं, सरकार उसमें से पैसा कमाती है जमीन के जरिये. यहां पर तो उल्टा है यहां पर अगर मुझे अस्पताल बनाना है, डीटीसी डीपो बनाना है तो दस करोड़ प्रति एकड़ के हिसाब से मुझे देना पड़ेगा. मैं कैसे, कहां से लाऊं ये पैसे तो जमीन तो मिलनी चाहिए ना हम लोगों और आप ये देखिए आज डीडीए अलग है, दिल्ली सरकार अलग है. प्लानिंग कौन करता है, चुन के कौन आया दिल्ली सरकार तो दिल्ली सरकार को अस्पताल बनाने हैं, स्कूल बनाने हैं, डीटीसी बस स्टैंड बनाना है. डीडीए को तो ये सब नहीं बनाना तो ये डीडीए की प्रायरटी ही नहीं है.

डीडीए एक तरह से बस फ्लैट बनाता जा रहा है, फ्लैट बनाता जा रहा है बिल्डरों को देके. तो बहुत बड़ी डायकॉटमी(दो भाग) है. दिल्ली सरकार लोगों की इच्छाओं को पूरा करने, लोगों के सपनों को पूरा करने के लिए बहुत सारे प्रोजेक्ट लाना चाहती है. हम स्किल यूनिवर्सिटी बनाना चाहते हैं. हम स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी बनाना चाह रहे हैं तो वो सारी प्रायरटी नहीं है डीडीए की उसमें.

सवाल दिबांग- पर अरविंद ये जो आप बातें कर रहे हैं ये नई नहीं है, और ऐसा नहीं है कि आप की सरकार है इसलिए, ये तो व्यवस्था ही ऐसी है.
केजरीवाल- इसको चेंज करना पड़ेगा
दिबांग- और जो आपको बहुमत मिला है, प्रचंड बहुमत मिला है वो इसको चेंज करने के लिए नहीं मिला है.
केजरीवाल- उसी को चेंज करने के लिए मिला है.
दिबांग- उसके लिए जो लोकसभा की सीटें लड़ी थी, चेंज वहां से होगा क्योंकि यहां से तो होगा नहीं.
केजरीवाल- जनता नहीं समझती.
दिबांग- पर आप तो समझते हैं.
केजरीवाल- नहीं मैं तो समझता हूं. टैक्सी ड्राइवर से मेरा एक दोस्त आ रहा था तो पूछ रहा था तो कहता है जी पुलिस वाले अभी उतना नहीं सुधरे बाकि चीजें सुधर गई. उसने कहा भाई पुलिस तो इनके अंडर में नहीं आती, कहता है अच्छा हमने तो जी इन्हीं को वोट दिया था था हमारे हिसाब से सब इन्हीं के अंडर में आता है. तो अब जनता नहीं समझती पहली चीज, दूसरी चीज अभी तक ऐसा नहीं हुआ था तो व्यवस्था बदलनी पड़ेगी ना.

शीला जी भी अपने किस्म का संघर्ष कर रहीं थी, आडवानी जी ने आवाज को उठाया था जब वो होम मिनिस्टर थे. वाजपेयी जी ने इस आवाज को उठाया था, मदन लाल खुराना जी ने इस आवाज को उठाया था, साहेब सिंह वर्मा जी ने इस आवाज को उठाया था तो इसको हम आगे ले जाएंगे. जिस भी तरीके रेफरेंडम क्या है, बेसिकली पब्लिक ओपिनियन. जैसे आप सर्वे करते हो ओपिनियन पोल, आप 500 का सैंपल लेते हो, हम 100 प्रतिशत का सैंपल लेलेंगे. ये दबाव है पब्लिक ओपिनियन, इसका कोई लीगल तरीका नहीं है.

सवाल निशित जोशी- आपका राजनीतिक दर्शन क्या है, मतलब जो कहो कि नहीं करना है वही करो, मसलन आपने कहा परिवार को मत घसीटो पॉलिटिक्स में, आप परिवार को लेकर आए, आपने कहा कि सरकार को पेट्रोल का दाम नहीं बढ़ाना चाहिए, आपने वैट लगा दिया.
केजरीवाल- अगर मैं कही जाऊं मान लीजिए बच्चे साथ आ जाते हैं और वो बाहर बैठ कर देख रहे हों तो वो गलत तो नहीं हैं, किसी रैली में मेरे बच्चे आ गए तो गलत तो नहीं, जब हम जीते तो मेरी पत्नी साथ आ गई. और आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें 80 प्रतिशत योगदान मेरी धर्म पत्नी का है. अगर मेरे परिवार का साथ मुझे नहीं मिलता तो मैं कुछ नहीं कर सकता था. तो अगर मैंने उसे पब्लिकली एक्नॉलेज किया तो कोई बुरी बात नहीं है. जिस दिन मैं टिकट दूं अपनी बीवी को उस दिन कहना केजरीवाल बदल गया.

वैट की बात आपने बड़ी अच्छी कही, पेट्रोल-डीजल वाली. हां हम उसके खिलाफ थे. थोड़ा से इसे समझने की कोशिश कीजिए इस बार हमने नायाब प्रयास किया, उत्तर भारत के छः राज्यों को हम साथ लेकर आए हैं.
दिबांग- इस पर हम बाद में आएंगे. ये वैट वाला सवाल है हमारे पास.

सवाल दिबांग- आपने कहा कि लोग नहीं समझते और ये आपका बड़ा डर है इसीलिए दिल्ली का 40 हजार करोड़ का बजट है और आपने 526 करोड़ रुपए प्रचार के लिए रखे हैं. आपने कहा दूसरे राज्यों को देख लें तो हमने पता किया और यूपी में पाया 3 लाख करोड़ का उनका सालाना बजट है और 90 करोड़ वो प्रचार में खर्च करते हैं. चूंकि अलग-अलग विभागों का होता है तो उन्होंने कहा ये सब मिलाजुला कर है. ढाई करोड़ अलग से रखा है जो कि टूरिज्म वाले करते हैं. 90 करोड़ और 526 करोड़ क्या ये सही है ?

जवाब केजरीवाल- ये सही है, इसे प्रॉपर प्रॉस्पेक्टिव में देखें पहली चीज ये कि जो आप अच्छा काम कर रहे हैं आप अपनी नीतियों को जनता तक लेके जाना पड़ता है. उसके लिए एड का बजट चाहिए जैसे कि हमने एड निकाला कि हम दिल्ली के अंदर लाइसेंस प्रथा खत्म करने जा रहे हैं. तो आप लोग लाइसेंस प्रथा खत्म करने के लिए सुझाव दीजिए, मैं आप को बता रहा हूं बहुत अच्छे-अच्छे सुझाव आ रहे हैं. हम अगले महीने एंटी पॉल्यूशन ड्राइव शुरु करने वाले हैं. पाल्यूशन के खिलाफ, इसमे हम पूरी दिल्ली में डीबेट कराने वाले हैं. देखेंगे कि जबरदस्त किस्म का प्रचार हो रखा है. हमने वैट का बहुत बड़ा टारगेट रखा है. उसको एक आंदोलन बना देंगे, हम रेड राज की जगह जनता को इसमें पार्टिशिपेट कराएगें. उसमें पैसा खर्च होगा, तो बहुत सारी सरकार की योजनाएं है जिसमें पैसा खर्च होता है.

दिबांग- ऐसा नहीं है कि हर बार आपने पैसे के दम पर चुनाव लड़ा हो, आपने तो बिना पैसे के चुनाव लड़ा.

केजरीवाल- चुनाव लड़ना अलग है सरकार चलाना अलग है.

दिबांग- ऐसा लग रहा है जो आप प्रचार कर रहे हैं उसमें निशाना प्रधानमंत्री पर भी कर रहे हैं. पीएम के नाम भी एक चिट्ठी आ जाती है आप के एड में.

केजरीवाल- सवाल ये है कि आज दिल्ली पुलिस प्रधानमंत्री जी के अंडर में आती है. या तो प्रधानमंत्री जी हर हफ्ते, महीने-दो महीने में घंटा-दो घंटा दिल्ली पुलिस को देना शुरु करें नहीं तो दिल्ली पुलिस हमें दे दें. सिंपल सा मसला है इसमें कोई दिक्कत नहीं है और बड़ी अदब के साथ पूरी ईमानदारी से सवाल पूछा है कोई हमला नहीं किया है.

सवाल रिफद- दिबांग ने आप से कहा कि जैसे आप ने पहला चुनाव 2013 में जीता, मीडिया आप के साथ नहीं थी, पैसे आप के पास नहीं थे फिर भी आप 28 सीट लेकर आ गए, दूसरे चुनाव में पैसे की फिर भी कमी थी आप कहते रहे आप ऐतिहासिक जनादेश लेकर आ गए तो ऐसा क्या हो गया कि उन्हीं आप की बातों को लोगों तक पहुंचाने के लिए सैकड़ो करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं ?

जवाब केजरीवाल- सरकार चला रहे हैं चुनाव नहीं लड़ रहे. अब आप कल को तो कहोगे कि आप 20 करोड़ में ही चुनाव जीत गए 40 हजार करोड़ में सरकार क्यों चला रहे हो. 40 नहीं अब इसको लेकर जाएंगे 60 हजार करोड़ करेंगे. स्कूल बनवाएंगे, अस्पताल बनवाएंगे सब कुछ करेंगे. 40 हजार करोड़ का एक दशमलव दो प्रतिशत है किसी भी ऑर्गनाइजेशन पांच से दस प्रतिशत मार्केटिंग का बजट होता है. आप आने वाला थोड़ा से महीना-दो महीना दीजिए लगेगा कि पैसा गलत खर्च हो रहा है, ज्यादा है तो कम कर देंगे. स्वराज का बजट है लोगों को पार्टिशिपेट कराना है. अभी तो टीवी पर दिख रहा है लोकल एरिया में प्रचार कराना है. इसमें वो भी है पैंपलेट बांटने पड़ते हैं. रिक्शा से प्रचार करना पड़ेगा. और अगर आप जनता को साथ लेकर चलना चाहते हैं तो प्रचार तो करना पड़ेगा. इस किस्म का प्रचार आपने देखा नहीं होगा. हमारा हर एड न्यूज बनता है. पहले क्या होता था वो चार मंत्रियों की फोटो आ जाती थी कि आज उद्घाटन समारोह है.

रिफद- आपका जो महत्व था फोकस था वो पब्लिक कनेक्ट से था कहीं ऐसा तो नहीं आप टीवी का एक माध्यम से उसको रिप्लेस कर दिया है ?

केजरीवाल- नहीं टीवी भी इंपॉटेंट है. तभी तो मैं आज यहां बैठा हूं नहीं तो आज मैं यहां ना बैठा होता. टीवी भी इंपॉटेंट है लोगों तक अपना मैसेज लोगों तक ले जाने के लिए प्रचार जरुरी है उसके अलग-अलग साधन जरुरी हैं.

दिबांग- चुनाव जो लड़ते हैं उसमें तो सिर्फ प्रचार ही करते हैं तब तो आपने बहुत अच्छा प्रचार कर लिया वो तो आपकी सीटें बताती हैं कि कितना अच्छा प्रचार किया. वो तो आपने बिना पैसे के ही कर लिया तो क्या आपको उस प्रचारतंत्र पर भरोसा नहीं रहा?

केजरीवाल- नहीं वो भी तरीके यूज कर रहे हैं और भी तरीके यूज कर रहे हैं. लेकिन तब अलग था तब हमें सिर्फ पार्टी का प्रचार करना होता था और अब सरकार का. सरकार के अलग-अलग महकमें हैं. ढेढ़ सौ डिपार्टमेंट हैं. सबके अलग-अलग प्रोग्राम है, अलग-अलग स्कीम है तो उसके प्रचार के लिए उस किस्म का प्रचार चाहिए.

सवाल दिबांग- आप हंस रहे हैं लेकिन आपने वैट बढ़ा दिया, जानकार ये बता रहे हैं कि दरअसल जो आपने बिजली और पानी पर सब्सिडी दी है उसकी भरपाई आप पेट्रोल और डीजल पर वैट बढ़ा कर करना चाहते हैं. क्या ये बात सही है कि आप को पैसा जुटाना है वो हैं नहीं कहीं ना कहीं से लाना है.

जवाब केजरीवाल- पैसा तो चाहिए सरकार चलाने के लिए. इसमें दो-तीन मुद्दे उठते हैं. मैंने ये कहा कि सवा लाख करोड़ का भ्रष्टाचार हो गया अगर ये सवा लाख करोड़ का भ्रष्टाचार ना होता तो पेट्रोल और डीजल पर आप लोगों के टैक्स लेने की जरुरत ना होती और पेट्रोल सस्ता हो जाता. पेट्रोल पर टैक्स ना लगे इस इकोनॉमिक्स पर कोई चर्चा नहीं है नंबर एक, नंबर दो हम उस दिशा में जाएंगे.

दिबांग- अब तो आप आ गए हैं तो भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए, मंहगाई कम होनी चाहिए?

केजरीवाल- आ रहा हूं उस टॉपिक पर मैं, पहली चीज तो ये हम इस दिशा में जाएगे. ये हमारा सपना है लेकिन तीन महीने में ही चले जाएगें ऐसा नहीं हो पाएगा. इस बार पहली बार जब हम आए तो हमने देखा कि वैट में सबसे बड़ी विसंगती क्या है, वो है डिफरेंशियल वैट. दिल्ली के अंदर एक्स, वाई आइटम पर 12 प्रतिशत टैक्स लगा करता था, हरियाणा के अंदर उसी आइटम पर 5 प्रतिशत टैक्स लगा करता था. तो होता क्या था हमारा जो बहादुरगढ़ के साथ लगा नजफगढ़, नरेला वाला एरिया उन सारे एरिया के अंदर मैन्यूफैक्चरिंग वहां होती था और बिलिंग बहादुरगढ़ में होती थी. दिल्ली को उस पर टैक्स नहीं मिलता था उस पर हमने 5 प्रतिशत टैक्स बढ़ा दिया. टिंबर और वुड आइटम्स के ऊपर 12 परसेंट से घटा कर 5 परसेंट कर दिया. तो एक प्रणाली शुरु की हम छः राज्य सरकारों को साथ लेकर आए ये बहुत बड़ी बात थी, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश राजस्थान और दिल्ली. तो इनके फाइनैंस मिनिस्टर को साथ लेकर आए और ये डिसाइड हुआ कि धीरे-धीरे इन राज्यों के अंदर सभी आइटम्स के ऊपर वैट को एक बराबर करेंगे. तो पहली चीज ली गई पेट्रोल और डीजल. उसपर सारे राज्यों में बराबर करने की कोशिश की गयी. तो दिल्ली को उसमें बढ़ाना था तो बढ़ाया, हरियाणा ने भी बढ़ाया. यहां पर बीजेपी वाले हाय-हाय करते हैं हरियाणा में भी बढ़ाया. हम सारे छः के छः राज्यों ने इसको बराबर कर दिया. मुझे ये उम्मीद है, थोड़ा सा दो-तीन साल का समय दे दीजिए. जैसे जैसे वैट का कंप्लायंस बढ़ेगा लोग टैक्स खुद-ब-खुद देना चालू करेंगे. और लोग करेंगे जैसे जैसे टैक्स का कंप्लायंस बढ़ेगा. हम आपके पेट्रोल और डीजल पर वैट को कम कर सकेगे. अब आप वादाखिलाफी कह ले पहला साल है, आज बढ़ा है मैं ये वादा कर के जा रहा हूं कि पांच साल के अंदर वैट को दिल्ली के अंदर कम पाएंगे.

सवाल विजय विद्रोही- केजरीवाल जी इस समय आपने प्रधानमंत्री से पंगा ले रखा है, ठुल्ला कह के पुलिस से पंगा ले रखा है, एलजी से पंगा आपका वैसे ही चल रहा है, पहले प्रेस से पंगा था फिर आपने वो नोटिफिकेशन वापस ले लिया, आपको कोई नहीं मिला तो आप ने प्रशांत भूषण से पंगा ले लिया तो आपकी ये पंगा पॉलिटिक्स है क्या ? तो आपकी इस पंगा पॉलिटिक्स में पब्लिक कितनी है और पॉलिटिक्स कितनी है ?

जवाब केजरीवाल- पहली चीज मैं कहना चाहता हूं एलजी साहब से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है, एलजी साहब बहुत अच्छे इंसान हैं. उनको ऊपर से पीएमओ से आदेश आते हैं. मैंने आपको बताया बस्सी साहब से हमारा कोई पंगा नहीं है, बस्सी साहब बहुत अच्छे आदमी हैं उनको ऊपर से पीएमओ से आदेश आते हैं. तो जो दिख रहा है हमने इससे पंगा ले लिया, उससे पंगा ले लिया. हम क्या करेंगे पंगा लेकर, हमें सरकार चलानी है, हमें जनता की सेवा करनी है. जो आपने कहा महिला आयोग वाला, देखिए चिट्ठी आयी है एलजी साहब के यहां से इसमें लिखा है सरकार का मतलब उपराज्यपाल है. अगर गर्वनेंस का मतलब उपराज्यापाल है तो चुनाव किसलिए कराए थे. फिर ये सरकार किस लिए है ये 67 सीट किस लिए है. तो ये उन्होंने खुद थोड़े ही लिखा है उनसे करवाया गया है.

दिल्ली महिला आयोग एक्ट में साफ-साफ लिखा है कि चुनी हुई सरकार महिला आयोग की अध्यक्ष को नियुक्त करेगी. चुनी हुई सरकार ने कर दिया. एलजी साहब ने कुछ नहीं किया उनको फोन आया होगा ऊपर से कि चिट्ठी लिखो एक इनको. अगर गर्वमेंट का मतलब एलजी तो सारी की सारी प्रणाली खत्म होगई. अब वो बेचारे क्या करते, उन्होंने चिट्ठी लिख दी. प्रधानमंत्री जी परेशान कर रहे हैं, उनको नहीं करना चाहिए मैं उनसे भी पंगे नहीं ले रहा मैं तो सिर्फ मुद्दे उठा रहा हूं. मैं इस पर एलजी साहब से मिल कर बात करुंगा एक-दो दिन में. लेकिन वो क्या करेंगे ऊपर से बहुत प्रेशर है. पीएम मिलने का टाइम नहीं दे रहे. मैंने सोचा था कि पीएम साहब से मिल कर कहूंगा कि सर चुनाव से पहले जो भी पॉलिटिक्स थी हमारे बीच अब प्लीज पांच साल सरकार ठीक से चलाने दें. आप तो पूरा देश चला रहे हैं.

विजय विद्रोही- अभी आपने कब टाइम मांगा था मिलने का?
केजरीवाल- अभी नीति आयोग की बैठक थी तो लंच के दौरान मैंने कहा था कि सर अगर आप टाइम दें तो मैं आता हूं. मैं दोबारा चिट्ठी लिख कर ट्राई करुंगा.

सवाल विनोद शर्मा- अरविंद आप कह रहे हैं कि एक आदमी देश चला रहा है, आप पर भी कुछ ऐसे ही आरोप लगते हैं कि सिर्फ एक आदमी दिल्ली की सरकार चला रहा है बावजूद इसके कि वो आदमी जो एनजीओ मूवमेंट से निकला, लोकतंत्र चरम सीमा पर था उस समय, जो लोकतंत्र का बच्चा है. उसने एकबार अपने आप को अराजक भी बोला और अराजक वो होता है जो हेरार्की के खिलाफ होता है . लेकिन आप ने अपनी पार्टी के भीतर एक हेरार्की बनाने के लिए कुछ लोगों को निष्काषित किया. अभी हाल ही में कहा कि वो वापस आ सकते हैं. मैं नहीं समझता वापस बुलाने का वो कोई सुंदर तरीका है अगर वापस बुलाना है तो उनके घर जाएं, उनके साथ एक नया संबंध बनाएं. और फिर वापस अपनी पार्टी में वापस लेकर आएं. आपकी मूवमेंट का सबसे बड़ा एसेट उसका बुद्धजीवी वर्ग था और उसका दमखम था, वो कैसे रीस्टोर होगा. इलेक्शन तो शायद आप दोबारा जीत जाएं लेकिन वो दमखम वो इंटलैच्युअल रिजर्व वायर कैसे रीस्टोर करेंगे आप ?

जवाब केजरीवाल- अभी भी बहुत सारे लोग हैं पार्टी के साथ, सरकार के साथ जुड़े हुए हैं. ये कहना गलत है. जितनी स्वतंत्रता हमारे सरकार के कैबिनेट मंत्रियों को है, मुझे नहीं लगता कोई भी मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों को देता है. केन्द्र सरकार में केंद्रिय मंत्रियों को अपना पीए रखने तक की इजाजत नहीं है प्रोग्राम बनाना तो दूर की बात है. आप अधिकारियों से पता करा लीजिए जितनी स्वतंत्रता हमारे मंत्रियों को है प्रोग्राम बनाने की है ऐसी स्वतंत्रता आपने कहीं नहीं देखी होगी. अपने एडवाइजर नियुक्त करते हैं, नए-नए प्रोग्राम लेकर आ रहे हैं. दूसरी चीज पार्टी के अंदर भी बढ़िया लोग हैं जो बहुत बहुत बढ़िया बैकग्राउंड छोड़कर आए थे. आशुतोष जी, संजय सिंह जी, कुमार विश्वास हैं जो किसी डिक्टेटरशिप में काम कर सकते हैं, ये बहुत स्ट्रांग इंडीविजुअल भी हैं.

सवाल अरविंद- मेरा ये कहना है कि ये दोनो लोग जिनको आपने निकाला और हमारे जैसे सब लोगों को लग रहा था कि आखिरी बार आप बीच-बचाव करके रास्ता निकालेंगे क्योंकि इन्होंने कोई पावर आप से नहीं मांगा था. अब दो महीने के बाद आप फिर उनकी तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं या ये बातें हवा में आ रही हैं. ये क्या एक राजनैतिक दांव है या सीरियस एफर्ट है. जो उनके साथ व्यवहार हुआ है उसमें मुझे लग रहा  है कि ये एक दांव होगा. पंजाब यूनिट उनके साथ जाती दिख रही है, किसान कैंप आपसे भारी दिख रहा है आप की पार्टी से तो क्या ये एक दांव है या एक सीरियल एफर्ट है ?

जवाब केजरीवाल- जिनके साथ रिश्तें हो उसे पब्लिक में डिसकस नहीं करना चाहिए और उनके साथ भविष्य में जरुर रिश्ते सुधरें कोशिश करेंगे. जैसा आप ने कहा काफी एफर्ट किए गए थे, ईमानदार एफर्ट्स किए गए थे, जो लोग बीच में थे वो भी ईमानदारी से एफर्ट कर रहे थे क्योंकि रिश्तों की बात ज्यादा पब्लिक में करने से चीजें सुधरने की बजाय बिगड़ जाती हैं.

अरविंद मोहन- प्रोफसर आनंद को बचाने में यही लोग मध्यस्थ थे, ऐसे में उनका कद गिरने के बजाए आपका गिरा है.

केजरीवाल- कोई बात नहीं इसे छोड़ दीजिए मेरा कद गिरा है. जनता ने हमें इन चीजों के लिए नहीं दिया. जिन चीजों के लिए हम यहां पर है वो है हमारा विकास, वो है स्कूल, वो है अस्पताल, आज जिस किस्म का विकास दिल्ली के अंदर शुरु हुआ है, और जिस प्रकार का ढांचा जनता के बीच पेश किया गया है उससे जनता को बहुत उम्मीदें है.

सवाल सबा नकवी- जो साथी आप के बिछड़ जाते हैं जैसे किरन बेदी, शाजिया इल्मी प्रशांत भूषण एक कड़वाहट रह जाती है जैसा कि हम सब ने देखा है राजनीति में काफी बिखराव होते हैं, लेकिन ऐसा राजनीति में आमतौर पर कम होता है. कभी टीवी पर आकर कुछ बोल जाते हैं, कोई ट्वीट कर कुछ लिख देता है, आपने कभी एनालिसिस किया है ऐसा क्यों हो रहा है ?

जवाब केजरीवाल- वो तो आप उन्हीं से पूछिए. मैं क्या कर सकता हूं?

दिबांग- इन दोनों लोगों के वापसी की वापसी पर आपकी फाइनल लाइन क्या है?

केजरीवाल- इसको छोड़िये ना क्योंकि अगर कुछ सुधरना भी होना तो उसके भी सारे रास्ते बंद हो जाते हैं. इसको छोड़ते हैं, मुझे पूरी उम्मीद है कि भविष्य में स्थितिया सुधरेंगी.

सवाल कंचन गुप्ता- अभी कुछ पहले प्रशांत भूषण ने पार्टी में वापसी पर जो बयान दिया उससे कोई रास्ता या खिड़की तो नजर नहीं आती.

केजरीवाल- इसे छोड़िए ना. मैं बोलूंगा फिर वो बोलेंगे और आप लोग हर जगह माइक लगाएंगे तो स्थिति सुधरने के बजाय और बिगड़ ही जाएगी.

सवाल: अरबों रुपए की वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी पर सियासी पार्टियों पर कब्जा है या खुद सरकार का. 123 प्रापर्टी ऐसी हैं जिन पर केन्द्र सरकार का कब्जा है वो दिल्ली वक्फ बोर्ड को हवाले करने की बात हो चुकी है लेकिन उसपर हुआ नहीं, तो जिन मुसलमानों ने आपको वोट दिया है उनको आप से उम्मीद है कि आप अरबों रुपए की प्रॉपर्टी वक्फ बोर्ड को दिलाने और उसकी हालत को सुधारने की कोशिश करेंगे.

जवाब केजरीवाल- परसों ही मैंने पूरी लिस्ट बनवायी है, एक दिक्कत ये आ गई कि दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन को लेकर कोई स्टेआर्डर ले आए हैं कोई. तो अभी वक्फ बोर्ड का पुर्नगठन नहीं कर पा रहे हैं जब तक स्टेआर्डर है लेकिन कल मैंने दिल्ली वक्फ बोर्ड के सीओ को बुलाया था, उनसे मैंने पूरी लिस्ट बनवायी है.

एक वो प्रापर्टी जिसके ऊपर वक्फ बोर्ड का अधिकार है कोई विवाद झगड़ा नहीं है लेकिन किसी ने कब्जा कर रखा है, मैंने कहा ये प्रापर्टी तो तुरंत खाली कराने की कार्रवाई शुरु कीजिए, दूसरी वो प्रापर्टी है जिसपर विवाद है मामले कोर्ट में है उसपर मैंने कहा आप लिस्ट बनाकर दे दीजिए हम अच्छा वकील करेंगे और तीसरी वो जिसपर वक्फ बोर्ड का कब्जा है उसका कैसे मुस्लिम कौम को फायदा हो उसका एक विजन डाक्यूमेंट तैयार कीजिए, इसमें हमें आपकी भी सहभागिता मिलेगी तो अच्छा होगा.

सवाल अभय कुमार दुबे- आपकी पार्टी ठीक से नहीं चल रही है, हर 15 दिन, महीने भर में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. आपकी पार्टी का एक आंतरिक लोकपाल भी है पर वो आंतरिक लोकपाल क्यों नहीं ठीक से काम नहीं करता है या ठीक से काम से नहीं दिया जाता है. चक्कर क्या है? एक आंतरिक लोकपाल आप के पास है उसकी रिपोर्ट आ सकती है तो आप चाहे तो इस शर्मिंदगी से बचा जा सकता है.

जवाब केजरीवाल- दिया गया है सर. मैं सिलसिलेवार बतता हूं, जैसे तोमर का इंसिडेंट है, तीन महीने पहले उठा.

दिबांग- लेकिन अरविंद फरवरी में ही हाइकोर्ट में सारे डाक्यूमेंट आ गए थे.

केजरीवाल- नहीं नहीं मुझे जो याद आ रहा है, हो सकता है मैं गलत हूं. हमारी सरकार बनने के बाद कोर्ट में केस फाइल हुआ और उसके बाद बार को रेफर किया गया और उसके बाद पुलिस ने जांच शुरु की. उनके गिरफ्तार होने के महीना-दो महीना पहले जब ये बात उठा तो मैंने तोमर साहब से बकायदा लिखित एक्सप्लेनेशन मांगी थी बतौर मुख्यमंत्री. उन्होंने मुझे सारे कामजात दिये और मैंने पढ़े और मुझे लगा कि कोई गलती नहीं है. फिर उसे बुलाकर मैंने पूछा तो उसने कहा मैं बच्चों की कसम खा कर कहता हूं कि मैंने कोई गड़बड़ नहीं की है. अब पता चला कि वो डाक्यूमेंट ही फर्जी थे. अब हमारे लोकपाल को भी लीगल पावर नहीं है कि वो किसी विश्वविद्यालय को लिख कर समन कर सके और वेरीफाई कर सके. यहां हमारी सीमाएं खत्म होती है. इसके बाद हमने बैठक में फैसला लिया कि अगर किसी मंत्री के खिलाफ गड़बड़ी पायी गई तो उसे पद से हटा दिया जाएगा जैसे तोमर के केस में किया गया.

दिबांग- यहां आप अरविंद वैसे ही दिखायी देते है जैसे मनमोहन सिंह देते थे, नरेंद्र मोदी दिखायी देते हैं. ऐसे ही मनमोहन सिंह को कोयला घोटाला नहीं दिखायी दिया जब तक कोर्ट ने कुछ नहीं किया, नरेंद्र मोदी को कोई गड़बड़ नहीं दिखायी देती ना वसुंधरा राजे में ना सुषमा स्वराज में. आपने तोमर की जांच शायद अभी तक नहीं करवाई है. आपने गिरफ्तार होने के बाद कदम उठाया. एक जांच की व्यवस्था नहीं है ऐसी व्यवस्था नहीं होगी तो आप गढ्ढों में गिरेगें.

केजरीवाल- नहीं दो चीजें हैं, पहली चीज तो ये अगर कोई तरीका हो सकता है, मैंने सारी सच्चाई आपके सामने रख दी, अगर आप को कोई पेपर पेश किए जाएं तो कोई पार्टी या लोकपाल कैसे जांच करे इसपर थोड़ा गौर करके बताइगा. इनफैक्ट जो दो केस हुए हैं दोनो केस में मामला यही है कि हम पेश हुए पेपरों की प्रमाणिकता हम नहीं जांच पाएं. नंबर दो जो कुछ हुआ, जैसा भी हुआ एक मंत्री को उसके घर से उठाया गया, जिस तरह से हमारे एमएल के खिलाफ छोटे-छोटे विवाद पर एफआईआर दर्ज की जा रही है, हमारे कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर हो रही है, कार्यकर्ताओं की पिटाई हो रही है. मुझे लगता है बहुत लार्जर लेवल पर आम आदमी पार्टी का विक्टिमाइजेशन हो रही है .

सवाल राजकिशोर तिवारी- मेरा सवाल थोड़ा भविष्य को लेकर है. सत्ता परिवर्तन तो आप दिल्ली में कर ले गए लेकिन अब लगभग दो कार्यकाल जो छः महीने के हो चुके हैं उसके बाद आपको लगता है जो व्यवस्था में बदलाव का जो संकल्प है आपका वाकई आगे बढ़ पाएगा और क्या दिल्ली का प्रयोग आगे अन्य राज्यों की तरफ आप बढ़ाएगें क्या?

जवाब केजरीवाल-  बिल्कुल होगा जी, शॉटटर्म में आपको गुड गवर्नेंस दिखायी देगी जैसे ऊपर से गंगा बहती है, ऊपर अगर ईमानदार मंत्री आ गए है उन्होंने अपने सेकेट्री ईमानदार चुन-चुन के रख लिए हैं इसी से आप देखेंगे कि करप्शन बहुत बड़े लेवल पर कम हो जाएगा. ये मैसेज बहुत जबरदस्त गया है दिल्ली के अंदर ऊपर अब सारी ईमानदार व्यवस्था मिल रही है जिसका प्रभाव नीचे भी पड़ रहा है. तो आपको गुड गवर्नेंस चालू होगी.

दिबांग- गुड गवर्नेंस का क्या मतलब है एक आम आदमी के लिए?

केजरीवाल- जैसे उसका बिजली का बिल कम हो गया दिल्ली के अंदर, सारे लोग मानते हैं कि उसका बिल कम हो गया, पानी फ्री में मिलने लगा, पानी अवेलिबिलटी बढ़ी है. कई लोग मुझसे कहते थे कि पानी को ऐसे फ्री दोगे तो पानी कम हो जाएगा. लोग पानी वेस्ट करेंगे, उल्टा हुआ है हमने 20 हजार लीटर की लीमिट बढ़ा दी तो लोग कोशिश करते हैं कि इससे कम ही रखो यार. द्वारका के अंदर इस बार पहली बार पानी आया, हौजरानी के अंदर पहली बार पानी आया और कई सालों से इन जगहों पर पानी नहीं आ रहा था.

सवाल: पानी की कीमत तो आपने कम कर दिया, फ्री दे दिया लेकिन जो पानी टैंकर माफिया की पकड़ है दिल्ली में उसपर आपने कुछ किया नहीं वो पकड़ अब भी बहुत मजबूत है?

जवाब केजरीवाल-  बहुत कम हो गया है, हमने टैंकर के अंदर जीपीएस लगा दिये हैं अब अगर टैंकर वाला बदमाशी करता है तो वो जीपीएस से पता चल जाता है. आप अपने फोन से मॉनिटर कर सकते हैं तो टैंकर माफिया के ऊपर बहुत बड़े स्तर पर कन्ट्रोल हुआ है. पानी की अवेलिबिलटी बढ़ी है, बिजली की अवेलिबिलटी बढ़ी है. लोग कहते थो कि बिजली के दाम आधे कर दिए तो बिजली मिलना बंद हो जाएगी.

हमने इसबार एडवांस 4 महीने की प्लानिंग की है. हर हफ्ते की प्लानिंग मेरी टेबल पर होती है तो दिल्ली में आज बिजली की कमी नहीं है अगर कहीं फॉल्ट है तो वो लोकल वजह से है. बिजली कंपनियों की एकांउटबिलटी फिक्स करने के लिए हम ये ले आये थे कि अगर इतने घंटे से ज्यादा बिजली अगर जाएगी तो आपको कंपनशेसन देना होगा. किसानों को मुआवजा हमने दिया जो कि पहली बार देश में हुआ. दिल्ली के किसानों को पहली बार 50 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर मुआवजा दिया गया. पीडब्लू डी की 1260 किलोमीटर सड़के हैं, हमने आने के 1 महीने के बाद ऑर्डर दिया अब आपको एक भी सड़कों पर गढ्ढे नहीं है. अगर कहीं गढ्ढा दिखाई दे एक फोन नं. है याद नहीं आ रहा, वहां फोन कर दीजिए गढ्ढा भर जाएगा.

जब एमसीडी में हमारी सरकार बनेगी उसकी भी सड़के बन जाएगीं. स्टूडेंट के लिए 10 लाख के लोन का जो प्रावधान करने जा रहे हैं तो स्टूडेंट बहुत खुश हैं. जहां जुग्गी झोपड़ी के बीच एयरकंडीशन मोहल्ला क्लीनिक  खुली है जनता को तो यकीन ही नहीं होता कि इस किस्म का क्लीनिक बन सकता है. पहले पांच करोड़ की एक डिस्पेंसरी बनती थी आज हमने 20 लाख में एक डिस्पेंसरी बनायी है. तो आप कहते हैं ना कि पैसा कहां से आएगा, अब हम उस 5 करोड़ से 25 डिस्पेंसरी बनाएगे.

जब मैं मीटिंग कर रहा था तो 15 लोगों ने डिस्पेंसरी डोनेट कर दिया. जिस दिन लोगों को ये यकीन हो गया कि सरकार ईमानदारी से काम कर रही है. जनता टैक्स भी देगी, डोनेशन भी देगी, जनता दिल खोल के साथ देगी. उसमें आपका ये 526 करोड़ रुपए काम आएगा जनता को साथ जोड़ने के लिए.

सवाल : आप जैसे कह रहे हैं कि करप्शन जैसे ऊपर से बंद होगा तो नीचे अपने आप बंद हो जाएगा लेकिन करप्शन पकड़ने व ाला तरीका आपका नीचे ही वाला है. चुनाव के समय आप ऊपर निशाना बना रहे थे, राबर्ट वाड्रा, अंबानी और आठ केंद्र के मंत्री और पकड़ते समय आप आजादपुर मंडी का चौकीदार और स्कूल का मास्टर यही पकड़ में आपके आ रहा है.

जवाब केजरीवाल- ऐसा नहीं है, करपश्न को डील करना है तो कई स्तर पर अपने को डील करना पड़ेगा और हमारा एफर्ट है जो सबसे इंपार्टेंट है एक आम आदमी की जिंदगी ठीक हो जाए. गुड गवर्नेंस मैंने कहा उसमें आता है और आप मेरे से पैसे मांग रहे हो. एक आम आदमी की जिंदगी ठीक कर देंगे फिर हम सिस्टमिक व्यवस्था परिवर्तन पर हम आएंगे कि कल हम रहे या ना रहें कोई इस व्यवस्था को बिगाड़ ना पाए तो ये टेलिफोन लाइन से दिल्ली में लोअर लेवल की करप्शन दिल्ली में कम हुई है.

अपर लेवल के करप्शन के लिए जो हमने किया है, आप को जान कर हैरत होगा हमारी जो एसीबी पर जो इन्होंने कन्ट्रोल किया है, पहली बार ऐसा हुआ कि चुनी हुई सरकार मैं मुख्यमंत्री हूं, मैं जिस फ्लोर पर बैठता हूं, मेरे ऊपर होम मिनिस्टरी है. होम मिनिस्टरी पर एक महीने से केन्द्र सरकार ने पुलिस भेजकर कन्ट्रोल रखा. दिल्ली पुलिस का कन्ट्रोल था मेरी होम मिनिस्टरी पर, कभी सुना है ऐसा. मेरी एसीबी ब्रांच उस पर अभी भी पैरा मिलेट्री फोर्सेस का कब्जा है इन्होंने ऐसा क्यों कर रखा है उनको डर था कि 8 जून को हम उनके एक केन्द्रीय मंत्री पर एफआईआर ना दर्ज कर लें.

दिबांग- ये केन्द्रीय मंत्री कौन हैं?
केजरीवाल- नहीं.
दिबांग- नाम बताने से डर क्यों रहे हैं?
केजरीवाल- फिर आप कहोगे सूबूत दो, मेरे पास है नहीं.
दिबांग- मैं सिर्फ नाम पूछ रहा हूं?
केजरीवाल- उनको डर था हम ऐसा कुछ करने वाले नहीं थे.
दिबांग- इमसे से ये भी ध्वनि निकलती है कि मोदी के मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं?
केजरीवाल- ये ललित गेट में कई लोगों के नाम आ रहे हैं.

सवाल राजकिशोर तिवारी- ये विरोधाभास नहीं है कि आप कह रहे हैं कि मोदी का कोई मंत्री कुछ कर नहीं पर रहा है तो भ्रष्टाचार कहां से कर रहा है?

जवाब केजरीवाल- मैं उस पर ज्यादा बोल नहीं सकता, एसीबी को पूरी तरह से इन लोगों ने कन्ट्रोल में कर रखा है जो कि एक गलत बात है. हमारी एसीबी में एक केस चल रहा था अंबानी, विरप्पा मोइली तो वो केस चल रहा था वो अभी ठप्प पड़ गया. शीला जी की सरकार वाले तीन-चार केस चल रहे थे वो ठप्प पड़ गए. तो वो सारी जांच पीछेले डेढ़ महीने से ठप्प पड़ी हैं.

सवाल दिबांग- जो ये सारी लड़ाई चल रही है, आप कह रहे हैं आप को घेरा जा रहा है आप भी लड़ते जा रहे हैं उनसे इन सब में बीजेपी वाले बहुत खुश हैं क्योंकि वो देख रहें कि अरविंद केजरीवाल ने जो हाल दिल्ली में किया वो और राज्यों में कर सकता था, हमने उसे दिल्ली में ही बांध दिया है. आप के पास कोई विभाग नहीं है लेकिन आप निकल ही नहीं पा रहे हैं दिल्ली से आप को उन्होंने चक्रव्यूह में फंसा दिया. जीत आखिर मे उन्हीं की हो रही है, आप उन्हीं का खेल खेल रहे हैं.

जवाब केजरीवाल-  तो उनको खेल समझ में ही नहीं आ रहा है. पूरे देश के अंदर एक ही मैसेज है कि केजरीवाल अच्छी सरकार चला रहा है, मोदी जी सरकार चलाने नहीं दे रहे हैं और आने वाले बिहार चुनाव तक दिल्ली की स्तिथि को और खींचा तो इसका खामियाजा इन्हे बिहार में भुगतना पड़ेगा. आप देखेंगे इस बात को.

सवाल दिबांग-  क्या आप बिहार में नीतीश कुमार के लिए प्रचार करने जा रहे हैं, उनका समर्थन कर रहे हैं, आप से नीतीश ने मुलाकात भी की है तो क्या नई शुरुआत वहां भी देखी जाएगी.

जवाब केजरीवाल- अभी कुछ सोचा नहीं है. मैं सबसे पहले एबीपी न्यूज को बताउंगा, संगीता मेरे से नाराज होगीं.

सवाल विनोद शर्मा- आप खुद वॉलेंटियर सेक्टर से आए हैं और आजकल वॉलेंटियर सेक्टर का हाल जो केन्द्र सरकार कर रही है. जो एनजीओ पर प्रतिबंध लगा रही है क्या आप समझते हैं एनजीओ सेक्टर भ्रष्ट था या सरकार एनजीओ सेक्टर से डर रही है. आप की इसपर क्या टिप्पणीं है?

जवाब केजरीवाल- सरकार वालेंटरी सेक्टर से डरती है. नहीं तो क्या जरुरत है. एनजीओ सेक्टर में भ्रष्टाचार है, जो भ्रष्टलोग हैं उनको पकड़िये ना. आप एक्राश द बोर्ड सब के ऊपर ब्रश चला देते हैं. मनीष सिसोदिया का एक एनजीओ है जो पांच-छः साल से निष्क्रिय है उसको भी बैन कर दिया. सब ऊपर से हो रहा है.

सवाल सबा नकवी- केजरीवाल- क्या आप फांसी की सजा से सहमत हैं
जवाब केजरीवाल-  कठीन सवाल है, मैं सही व्यक्ति नहीं हूं और ये प्लेटफार्म भी सही नहीं है.
सवाल अभय कुमार दुबे- आप की सरकार जो प्रचार कर रही है उसमें व्यक्तिवाद, एक व्यक्ति का महिमा मंडन है,आलोचना की कि मोदी जी ने व्यक्तिवाद स्थापित करके भारतीय जनता पार्टी जो आवाज बहुल पार्टी थी उसको एक आवाज पार्टी बना दिया, लेकिन अगर आम आदमी पार्टी में आप ही का नाम होगा, आप ही की आवाज होगी, यहां तक की विज्ञापनों में आम आदमी पार्टी का भी जिक्र नहीं होगा, तो फिर ये कैसे होगा ?

जवाब केजरीवाल- पहली चीज तो ये कि विज्ञापन सरकार के हैं उसमें आम आदमी पार्टी का जिक्र नहीं हो सकता, दूसरा आप इसको टोटल कम्युनिकेशन को एक साथ देखिए केवल एड को मत देखिए. टोटल कम्यूनिकेशन को अगर आप देखेंगे , चुनाव के बाद शायद मेरा पब्लिक. मैं जनता के बीच में तो खूब जाता हूं. मीडिया के साथ बातचीत अब हमारे मंत्री सीधे करते हैं. मैं नहीं करता, क्योंकि मेरे पास कोई विभाग नहीं हैं, मैं तो ओवरऑल सुपरविजन कर रहा हूं. सतेंद्र जैन रोज इंटरव्यू देते हैं, नागेंद्र शर्मा हमारे ऑफिशियल प्रवक्ता हैं. मनीष सिसोदिया सारे रिएक्शन देते हैं. आप मेरे को कभी नहीं देखेंगे. तो बहुत सारे चेहरे हैं जो काम कर रहे हैं और सामने आ रहे हैं. कम्यूनिकेशन को अगर ओवरऑल देखेंगे तो काफी डायवर्सिटी नजर आती है.

सवाल दिबांग- कोर्ट में इस पर कयास लगते रहे कि वो परेशान करते रहे हम काम करते रहे. ये वो कौन है ? क्या ये जज हैं सुप्रीम कोर्ट के हाईकोर्ट के ? क्या ये मीडिया वाले हैं? इस पर बहस हुई और इस पर ये कहा वकील ने या ये विपक्षी हैं ? कौन हैं वो? क्या आप इस पर आज साफ कर सकते हैं ?

जवाब केजरीवाल-  जनता समझ गई. समझने वाले समझ गए जो ना समझे वो अनाड़ी है.

दिबांग - ये रैपिड फायर राउंड है, मैं आप से पांच सवाल पूछूंगा, आप चाहें तो सवाल छोड़ भी सकते हैं, अगर आप 3 सवालों के जवाब देंगे तो हम एबीपी न्यूज की तरफ से आपको एक गिफ्ट हैंपर देंगे.

पहला सवाल - आपकी सबसे बड़ी राजनीतिक भूल कौन सी रही? पिछली बार जो आपने इस्तीफा दिया या आपने तोमर से इस्तीफा नहीं लिया?

जवाब केजरीवाल- मेरे ख्याल से जो मैंने इस्तीफा दिया वो, तोमर से इस्तीफा नहीं लिया क्योंकि मेरे पास पर्याप्त तथ्य नहीं थे. वो मैं शायद दोबारा होगा तो शायद पता नहीं मैं कर पाऊंगा की नहीं .

दूसरा सवाल -  मैं जान रहा हूं कि आप इस पर कहेंगे कि हम मिल बैठकर इस पर बात करेंगे, तब पार्टी तय करेगी . पर अगर आपकी निजी राय पूछी जाए तो राज्यसभा में आप किसको भेजेंगे? कुमार विश्वास को या संजय सिंह को?

जवाब केजरीवाल- दिबांग को.

दिबांग- नहीं दिबांग विकल्प नहीं है इसमें. आपके पास केवल दो विकल्प है या आप सवाल छोड़ सकते हैं.

केजरीवाल - दिबांग को.

दिबांग - दिबांग विकल्प में नहीं हैं.

केजरीवाल- हम मिल बैठकर तय करेंगे, जो पार्टी तय करेगी वो करेंगे.

दिबांग- आपकी निजी राय उस बैठक में क्या होगी ? कुमार विश्वास या संजय सिंह ?

केजरीवाल- आप लड़ाई करा कर रहोगे आज. इस सवाल को छोड़ेंगे.

तीसरा सवाल दिबांग- 10 साल बाद आप अपने आप को कहां देखते हैं. दिल्ली का मुख्यमंत्री या आईआईटी पास भारत का पहला प्रधानमंत्री ?

जवाब केजरीवाल- नहीं मुझे प्रधानमंत्री बनने का कोई शौक नहीं है और ना मैंने कभी इस बारे में सोचा. और ना ही मेरा दूर-दूर तक इरादा है. मेरा मकसद एक राज्य को आदर्श, देश-दुनिया के सामने रखना है. ये मेरा सपना.

दिबांग - इसका मतलब आप दिल्ली का मुख्यमंत्री, इस सवाल का आप जवाब दे रहे हैं.

केजरीवाल- जितना जल्दी हम दिल्ली को उस आदर्श राज्य तक ले जा पाएं उतना अच्छा है. पर उसके लिए मोदी जी से थोड़ी गुजारिश कीजिएगा कि ये रोज-रोज की अड़चने ना डाले ताकि हम काम कर सके. काम नहीं करने दे रहे वो तो कैसे आदर्श बनाएंगे ?

दिबांग- पर आप जा सही रास्ते पर रहे हैं, क्योंकि हर मुख्यमंत्री यही कहता है कि मैं प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहता, लेकिन उनमें से कई बन जाते हैं. कम से कम एक तो बन गया.

चौथा सवाल- आपके दो साथी हैं जो अब आपके साथ नहीं रहे, उनमें से आप किसको बेहतर मानते हैं? योगेंद्र यादव या  प्रशांत भूषण?

जवाब केजरीवाल - अब सारे सवाल लड़ाई कराने वाले पूछ रहे हैं. अगला सवाल ? आपकी मुझे गिफ्ट हैंपर देने की मंशा ही नहीं है, नीयत खराब है.

पांचवा सवाल दिबांग - आप क्या पसंद करते हैं, विपश्यना पर जाना या बच्चों के साथ छुट्टी मनाने जाना?

जवाब केजरीवाल - इस में भी आप बच्चों से लड़ाई करवाएंगे .

दिबांग - इसका मतलब आप विपश्यना पर जाना चाहते हैं. आपने केवल दो सवालों के जवाब दिए.

केजरीवाल - ये आपका पहला शो है तो इसमें इतनी रियायत तो आप दे सकते हैं.

दिबांग - जी बिल्कुल.

Link full Interview


Thursday 25 June 2015

AAP puts forward Swaraj Budget

– I take pleasure & pride in saying that this is nation’s first ‘Swaraj Budget': Delhi Deputy CM Manish Sisodia–

We’ve taken into account expectations & aspirations of Delhi people while preparing this Budget, this is a budget for “aam aadmi”

– We want to develop Delhi as a world class skill centre through way of this budget

–  People of Delhi paid tax worth of 1,30,000 crores to Centre but got back only 325 crores

– Delhi govt will focus on price control, Delhi will be first corruption-free state in India

– The Delhi Government Budget of this year is provisioned to be around Rs 41129 crores

– When Centre took control of Delhi, the state incurred losses of Rs 4000 crore every month

– Subsidy for electricity & water Rs 1690 crore

– Centre’s help to Delhi a meager Rs 325 crores

– A “Swaraj Fund” will be set up worth Rs 253 crores

– Contractors will be paid only once the public is satisfied with the work

– Free wifi for all colleges in the 1st phase, budget allocated for the same is Rs 50 crores

– E- District to be implemented, District Magistrate will issue certificate with digital signature.

– Proposed budget for education for 2015-16 stands at Rs 9836 crores

– CCTV cams to be installed in all Govt schools, transparency & accountability to be maintained

– “Pay & Play” scheme would enable people to play at govt run stadiums for a nominal fee

– Budget allocation for health sector stand at Rs 4787 crores

– CCTV cams and marshals to be deployed in DTC buses

–  GPS & water sensors installed in water tankers

– Full statehood is not mere dream, we are raising this issue with centre regularly: Manish Sisodia

Ye aam aadmi ka budget hai,khaasiyat iss budget ki ye hai ki humne jo kaha wo kia: CM Arvind kejriwal

Saturday 16 May 2015

सौ दिन, एक साल, दो सरकारें!

#100DaysOfMufflerMan Vs #ModiAtOne


दिल्ली योग देख रही है. एक सरकार के सौ दिन, दूसरी के एक साल! दिलचस्प यह कि दोनों ही सरकारें अलग-अलग राजनीतिक सुनामियाँ लेकर आयीं. बदलाव की सुनामी! जनता ने दो बिलकुल अनोखे प्रयोग किये, दो बिलकुल अलग-अलग दाँव खेले. केन्द्र में मोदी, दिल्ली में केजरीवाल! मोदी परम्परागत राजनीति के नये माडल की बात करनेवाले, तो केजरीवाल उस परम्परागत राजनीति को ध्वस्त कर नयी वैकल्पिक राजनीति के माडल की बात करने वाले. दोनों नयी उम्मीदों के प्रतीक, दोनों नये सपनों के सौदागर. जनता ने एक साथ दोनों को मौक़ा दिया. कर के दिखाओ! जनता देखना चाहती है कि राजनीति का कौन-सा माडल बेहतर है, सफल है, मोदी माडल या केजरीवाल माडल? या फिर दोनों ही फ़्लाप हैं? या दोनों ही नये रंग-रोग़न में वही पुरानी खटारा हैं, जिसे जनता अब तक मजबूरी में खींच रही थी!

मोदी और केजरीवाल : कितनी उम्मीदें पूरी हुईं?


केजरीवाल सरकार 24 मई को अपने सौ दिन पूरे कर रही है, तो मोदी सरकार 26 मई को एक साल! इन दोनों सरकारों से वाक़ई लोगों को बहुत बड़ी-बड़ी उम्मीदें थीं? क्या वे उम्मीदें


पूरी हुईं? हुईं, तो कहाँ तक? केजरीवाल तो दावे करते हैं कि जनता तो उनसे बहुत ख़ुश है और वह हर पन्द्रह दिन में जनता के बीच सर्वे किया करते हैं. और उनके मुताबिक़ अगर आज दिल्ली में वोट पड़ें तो उनकी आम आदमी पार्टी को 72 प्रतिशत वोट मिल जायेंगे, जबकि पिछले चुनाव में तो 54 प्रतिशत वोट ही मिले थे! लेकिन क्या वाक़ई जनता केजरीवाल से इतनी ही ख़ुश है? उधर, दूसरी तरफ़, एक बड़े मीडिया समूह के सर्वे के मुताबिक़ मोदी सरकार के कामकाज से देश में 60 प्रतिशत लोग आमतौर पर ख़ुश हैं!
मोदी: छवि का संकट!

मोदी सरकार के काम की तुलना स्वाभाविक रूप से पिछली मनमोहन सरकार से ही होगी. वैसे लोग कभी-कभी उनकी तुलना अटलबिहारी वाजपेयी सरकार से भी कर लेते हैं. लेकिन केजरीवाल की तुलना किसी से नहीं हो सकती क्योंकि वह ‘आम आदमी’ की ‘वीआइपी संस्कृति विहीन’ और एक ईमानदार राजनीति का बिलकुल नया माडल ले कर सामने आये. इसलिए वह कैसा काम कर रहे हैं, इसकी परख केवल उन्हीं के अपने माडल पर ही की जा सकती है.

तो पहले मोदी. इसमें शक नहीं कि नरेन्द्र मोदी के काम करने और फ़ैसले लेने की एक तेज़-तर्रार शैली है, इसलिए यह सच है कि सरकार के काम में चौतरफ़ा तेज़ी आयी है. भ्रष्टाचार का कोई धब्बा सरकार पर नहीं लगा है. विदेश नीति को भी मोदी ने नयी धार दी है और एक साल में 19 विदेश यात्राएँ कर अन्तरराष्ट्रीय मंच पर भारत की गम्भीर उपस्थिति दर्ज करायी है और साथ ही पूरी दुनिया पर अपनी छाप भी छोड़ी ही है. लेकिन यह भी सच है कि इस सबके बावजूद सरकार आर्थिक मोर्चे पर कुछ ख़ास आगे नहीं बढ़ सकी. सरकार के नये आर्थिक विकास माडल, कई प्रस्तावित विवादास्पद क़ानूनी संशोधनों और कुछ कारपोरेट दिग्गजों से प्रधानमंत्री की ‘नज़दीकी’ की चर्चाओं के कारण एक तरफ़ उसकी छवि ‘कारपोरेट तुष्टिकरण’ करनेवाली सरकार की बनी, दूसरी तरफ़ किसानों को किये समर्थन मूल्य के वादे से मुकर जाने, मनरेगा और दूसरी तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बजट में कटौती कर देने और भूमि अधिग्रहण क़ानून पर अपने ही सहयोगी दलों के विरोध को अनदेखा कर अड़ जाने के कारण सरकार की ‘ग़रीब-विरोधी’ और ‘किसान-विरोधी’ छवि भी बनी. आशाओं के सुपर हाइवे पर चल कर आयी हुई किसी सरकार के लिए एक साल में ऐसी नकारात्मक छवि बन जाना चौंकानेवाली बात है, ख़ासकर उस नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के लिए जिसने आज की राजनीति में मार्केटिंग और ब्रांडिंग का आविष्कार किया हो!

केजरीवाल: विवादों से पीछा नहीं छूटता!


और अब केजरीवाल. यह सही है कि केजरीवाल सरकार ने बिजली-पानी जैसे कुछ वादे फटाफट पूरे कर दिये, सरकार में कहीं वीआइपी संस्कृति नहीं दिखती, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ हेल्पलाइन फिर शुरू हो गयी, और ‘स्वराज’ के तहत दिल्ली का बजट बनाने की क़वायद मुहल्लों में जा कर जनता के बीच की जा रही है, लेकिन इन सौ दिनों में ही केजरीवाल सरकार भी सैंकड़ों विवादों में घिर चुकी है. केन्द्र की बीजेपी सरकार, दिल्ली के उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस से केजरीवाल सरकार का रोज़-रोज़ का टकराव तो आम बात है ही, हालाँकि इसमें केन्द्र सरकार और उसके इशारे पर उप-राज्यपाल नजीब जंग द्वारा की जा रही राजनीति की भी कम भूमिका नहीं है. इन सौ दिनों में ही पार्टी बड़ी टूट का शिकार भी हो गयी. एक मंत्री की कथित फ़र्ज़ी डिग्री का विवाद काफ़ी दिनों से अदालत में है और हैरानी है कि इस मामले पर स्थिति अब तक साफ़ क्यों नहीं हो पायी है? सारी डिग्रियाँ असली हैं, तो एक विज्ञापन निकाल कर जनता को बता दीजिए, बात ख़त्म. लेकिन वह मामला जाने क्यों अब तक गोल-गोल घूम रहा है? आम आदमी पार्टी ने जैसी स्वच्छ राजनीति का सपना दिखाया था, उस पर पिछले चुनाव के दौरान ही कई सवाल उठे थे और बाद में पार्टी में हुई टूट के दौरान कई नये विवाद सामने आये थे? केजरीवाल-विरोधी गुट का उन पर यही आरोप था कि पार्टी जिन सिद्धाँतों को लेकर बनी थी, उनकी पूरी तरह अनदेखी की जा रही है. पार्टी में टूट का चाहे भले जो कारण रहा हो, लेकिन इस आरोप में सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि ‘स्वच्छ राजनीति’ के बजाय ‘आप’ को मौक़ा पड़ने पर ‘सुविधा की राजनीति’ के तौर-तरीक़े अपनाने में कोई संकोच नहीं होता.

तब की बात, अब की बात!


‘आप’ अगर परम्परागत राजनीतिक दल के तौर पर ही मैदान में उतरी होती, तो इन बातों को लेकर कोई उससे निराश नहीं होता. लेकिन अगर आप वैकल्पिक राजनीति की बात करते हैं, तो ये सवाल शिद्दत से उठेंगे ही क्योंकि शुरू में ‘आप’ ने इन्हीं बुराइयों के विरुद्ध विकल्प के तौर पर अपने को पेश किया था. ‘आप’ ने सिद्धाँतों और ईमानदारी के झंडे लहरा कर अपनी बुनियाद रखी थी. और अगर दो साल में ही वह लगातार अपनी ज़मीन से फिसलते हुए दिखे, तो यह उन लोगों के लिए भारी निराशा की बात होगी, जिन्होंने ‘आप’ के भीतर किसी नये वैकल्पिक राजनीतिक माडल का सपना देखा था! आप आज अपनी बात पर नहीं टिके रह सकते तो कल किसी बात पर टिके रहेंगे, इसका क्या भरोसा?

दिलचस्प बात यह है कि यही बात नरेन्द्र मोदी पर और बीजेपी पर भी लागू होती है. आधार कार्ड, बांग्लादेश से सीमा समझौता, रिटेल में एफ़डीआइ, पाकिस्तान नीति समेत ऐसे मु्द्दों की लम्बी सूची है, जिनका मोदी और बीजेपी ने यूपीए सरकार के दौरान मुखर विरोध किया था और सरकार की नींद हराम कर दी, संसद नहीं चलने दी, आज उन्हीं को वह पूरे दमख़म से लागू कर रहे हैं. अगर तब वह ग़लत था, तो आज क्यों सही है? और अगर तब वह सही था, तो आप उसका विरोध क्यों कर रहे थे? क्या यह विरोध सिर्फ़ राजनीति के लिए था, सिर्फ़ तत्कालीन सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के लिए था? अगर इसका उत्तर ‘हाँ’ है, तो यक़ीनन आज हमें ऐसी राजनीति नहीं चाहिए. ऐसी राजनीति देशहित में नहीं है. जनता को अब मुद्दों पर निरन्तरता चाहिए, राजनीतिक बाज़ीगरी नहीं.

‘न्यूज़ ट्रेडर्स’ बनाम ‘सुपारी मीडिया!’


मोदी और केजरीवाल में एक और अजीब समानता है! ‘मन की ख़बर’ न हो तो एक मीडिया को ‘न्यूज़ ट्रेडर्स’ कहता है, दूसरा उसे ‘सुपारी मीडिया’ कहता है! पता नहीं कि इन दोनों को ही मीडिया से ऐसी शिकायतें क्यों हैं? और यही मीडिया जब लगातार मनमोहन सिंह सरकार की खाल उधेड़ रहा था तो सही काम कर रहा था!
बहरहाल, एक सरकार के सौ दिन और एक सरकार के एक साल पर आज उनके कामकाज से हट कर उनकी चालढाल को लेकर उठे सवाल ज़्यादा ज़रूरी हैं. ख़ास कर इसलिए भी कि ये दोनों सरकारें उम्मीदों के उड़नखटोले लेकर आयी हैं. इनसे लोगों ने केवल काम करने की ही उम्मीदें नहीं लगायी हैं, बल्कि यह आस भी लगायी है कि ये देश और राजनीति की दशा-दिशा भी बदलें. और वह तभी होगा, जब इनकी चालढाल भी बदले!

written by http://twitter.com/rajkumaraap